यह सच का सामना है या दर्शकों को बेवकूफ बनाने के लिए नूरा कुश्ती हो रही है कहने का मतलब कि.......................
हम जो कहें वह जवाब दीजिये। उसे हम अपने मुताबिक (दर्शकों के रोमांच का ख्याल रखते हुए) सही या गलत ठहराएंगे।
आप अपने पैसे से मतलब रखिये और हमें भी कमाने दीजिये। हाँ! इसके लिए आपको समाज में थोडी शर्मिंदगी झेलनी पड़ सकती है, परन्तु इतने पैसों के लिए आप इतना बलिदान तो कर ही सकतें हैं।
फिर भारतीय पब्लिक तो अल्प-स्मृति से ग्रस्त है. और हम इसे इतना ग्लेमर प्रदान कर रहें हैं कि भ्रष्टाचार या समलैंगिकता की तरह इसे भी सामाजिक मान्यता मिल जायेगी।
क्या एक सोची -समझी साजिश के तहत भारतीय मूल्यों को तार - तार नहीं किया जा रहा ?
या फिर यह बन्दर के हाथ में उस्तरे वाला मामला है?
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अब बाजारवाद हमारी निजी जिन्दगी तक में दखल देने लगा है, उसका उदाहरण है - सच का सामना।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
बहुत बुरी स्थिति है !!
जवाब देंहटाएंमैं सौ फीसद सहमत हूं आपसे। भारतीय जनमानस को निकृष्टता परोसी जा रही है और बाजार की मांग के आधार पर कार्यक्रमों का निर्धारण हो रहा है।
जवाब देंहटाएंकाहे का सच का सामना?
जवाब देंहटाएंक्या संसार में बेहूदा बातों को छोड़ कर और कोई सच नहीं है?
ये सच का सामना नहीं, आबरू बेचना है। आज लोगों की निगाहों में पैसे का इतना महत्व हो गया है कि लोग पैसे के लिए अपनी इज्जत तक बेचने के लिए दौड़े चले आ रहे हैं।
उदय प्रकाश जी के ब्लाग पर आपकी टिप्पणी पढी. आपने बिल्कुल सही जवाब दिया. मैं उन्हें काफी समय से पढ रहा हूं उन्हें पसन्द भी करता हूं लेकिन अपने को महान मानने की बीमारी उनमें भी है. खैर आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा. मेरा प्रणाम स्वीकारें
जवाब देंहटाएंkuch naya post kariye.........
जवाब देंहटाएंबन्धु, आप के लेखन में तो काफी दम है. फिर आपकी इतनी लम्बी खामोशी क्यों है? इस दुनिया में बहुत कुछ है, हम आप के विचारों की प्रतीक्षा में हैं.
जवाब देंहटाएंआपकी चिंता एकदम सही है. बाज़ार और ग्लैमर जो कराए कम ही है!
जवाब देंहटाएंसमाज को इसे प्रोग्राम का विरोध जाताना चाहिए.
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