गुरुवार, 8 अक्तूबर 2009

एक महान साहित्यकार और मुझ जैसे सांप्रदायिक, कट्टर हिन्दुत्ववादी मूर्ख का संवाद

किसी विषय पर आवश्यक शोध और सामग्री संग्रह हेतु समय की कमी, रचनाकर्म के लिए आवश्यक एकांत और एकाग्रता के अभाव के कारण पोस्ट के बजाय टिप्पणियों द्वारा ही अपने विचार व्यक्त करने का दुराग्रह पाले मैं ब्लागजगत से जुड़े रहने को प्रयासरत हूँ. कभी-कभी टिप्पणियां मूल पोस्ट से भी लम्बी हो जाया करती हैं अतः यह केवल सहमति-असहमति और शोक या शुभकामना सन्देश भर न होकर मेरे विचारों का प्रतिबिम्ब होती हैं।

महान साहित्यकार उदय प्रकाश जी की ताजा पोस्ट पर की गयी मेरी टिप्पणी के जवाब में उदय प्रकाश जी से कुछ ज्ञान और "विशेषण" प्राप्त कर अनुग्रहीत हुआ हूँ. ब्लाग पर होने के नाते न तो यह पोस्ट व्यक्तिगत है और न ही मेरी टिप्पणी और उनका प्रतिउत्तर. अतः आप सभी को इस विमर्श में आमंत्रण देकर मैं उदय जी की निजता को भंग नहीं कर रहा हूँ ऐसा मेरा विश्वास है.मैं इसे इसलिए भी इसलिए भी अनुचित नहीं समझता क्योंकि उदय जी ने मुझ जैसे "मूढ़ मगज, सांप्रदायिक, युद्धप्रिय, रक्तपिपासु" के साथ किसी भी प्रकार के संवाद की सम्भावना को खारिज कर दिया है. शायद आप उनके विचारों को बेहतर समझ सकें अतः आप सभी को आमंत्रित करता हूँ-



उदय जी की मूल पोस्ट "एक आतंकी का पति (दो)"





इस पर मेरी टिप्पणी -



निशाचर said...
उदय जी, पाकिस्तान के परमाणु परीक्षण की जिम्मेदारी भारत पर डालकर आप इतिहास दोहरा रहें हैं क्योंकि १९६२ के चीन हमले कि जिम्मेदारी भी हमारे विद्वान वामपंथी भारत पर ही डालते हैं जबकि सत्य यही है कि पाकिस्तान परमाणु बम पहले ही बना चुका था (इसे चुरा या खरीद चुका था पढें). भारत का परमाणु परीक्षण पाकिस्तान को लक्ष्य कर नहीं वरन चीन को ध्यान में रखकर किया गया था. जहाँ तक जुल्फिकार, बेनजीर या जिया-उल-हक़ के पागलपन की बात है उसके लिए भारत किस तरह दोषी है? पाकिस्तान का जन्म ही हिन्दू विरोध की बुनियाद पर हुआ है. "हिन्दू हम पर राज करेंगे" कहकर मुसलमानों को पाकिस्तान के लिए भड़काया गया. आज पाकिस्तान की क्या हालत है वह किसी से छुपी नहीं है और उसके बावजूद वहां के नेता किस राह पर चल रहें हैं और दुनिया की आँखों में धूल झोंकने में मशगूल हैं वह भी जगजाहिर है।

"गांव-गांव, शहर-शहर 'शहीदों' के ताबूत पहुंच रहे थे और मरने वालों के पिताओं, विधवाओं, बच्चों को 'पेट्रोल पंप' और कभी कुछ और ईनाम दिया जा रहा था।"

कारगिल का युद्ध भी भारत पर थोपा गया युद्ध ही था. उसका भारत के परमाणु परीक्षण से क्या लेना -देना?? अगर आपको शहीदों के परिजनों को दी जाने वाली सहायता राशि पर आपत्ति है तो फिर हम कश्मीर में आतंकवादियों के परिवारों को दी जा रही पेशन के बारे में भी आपके विचार जानना चाहेंगे।


"लेकिन कानून तो किसी भी विवाह को तभी स्वीकार करता है, जब उस पर किसी धर्म या मज़हब की मुहर लगी हो। इसीलिए निकाह के लिए जब लड़का और लड़की मौलवी के पास पहुंचे तो मौलवी ने लड़के से कहा -'निकाह के लिए तुम्हें मज़हब बदलना होगा।' "

एक हिंदुबहुल देश में केवल हिन्दू लड़के को "धर्म" से इजाजत की आवश्यकता पड़ी (जो कि धर्मपरिवर्तन करने पर ही मिली). क्या उस "मोहब्बत की सीख देने वाले मजहब" के विषय में कुछ कहने की आवश्यकता है?


"ईसा की सातवीं सदी के पहले जब कहीं मुसल्मान जैसा कौम नहीं था या ईसा से ह़ज़ार साल पहले,पश्चिमी लोगों के आने के पहले तक जब कोई हिंदू कहीं नहीं होता था, हमारी लोक-गाथाएं तब भी थीं। राम से लेकर कृष्ण तक की, रामायण से लेकर महाभारत तक के पात्र तब भी थे। लेकिन वे ना तो हिंदू थे ना मुसलमान। वे तो सिंधु सभ्यता के लोगों की साझी संस्कृति की सम्मिलित मिथक-लोक आख्यानों के हिस्सा थे। राम पर सिर्फ़ कट्टर हिंदुत्ववादियों का अधिकार कैसे हो गया? उनके नाम पर सांप्रदायिक हिंसा और युद्ध और जनसंहार क्यों होने लगा?"

चलिए कम से कम आपने माना तो सही कि हिन्दू प्रतीक इसलाम से पूर्व भी थे और राम- कृष्ण का कोई अस्तित्व भी था वरना वाम बुद्धिजीवी तो इसे हिन्दुओं कि कल्पना मात्र कहते हैं. दूसरी बात, जिन्हें आप कट्टर हिन्दुत्ववादी कहते हैं वही "सांस्कृतिक राष्ट्रवाद" के पोषक हैं. उनका भी सवाल यही है कि जब इस्लामी आक्रमण से पूर्व आपके पूर्वज हिन्दू ही थे और आपकी रगों में वही रक्त प्रवाहित हो रहा है तो फिर कट्टरता का यह "अरबी" चोला क्यों? राम पर किसी ने अधिकार नहीं किया है कुछ लोग हैं जो राम का अधिकार ही छीन लेना चाहते हैं. इसका प्रतिकार करना हर इंसान का कर्त्तव्य है।

"इनका जवाब दिया जाना चाहिए। इसलिए कि हिंसा और राजनीति के इस विनाशकारी खेल की कीमत उन महान मिथकीय पात्रों को चुकानी पड़ती है। राम जैसे करुणा और वंचना के मानवीय मिथक-नायक को देख कर अन्य समुदाय के बच्चे डर कर रोने लगते हैं।"

उदय जी,कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जो जालीदार टोपी, तालिबानी दाढ़ी और "नारा ए तकबीर" का शोर सुनकर सहम जाते हैं, परन्तु आपको इस बात पर कोई ऐतराज या शर्मिंदगी नहीं क्योंकि इस्लाम इसे मान्यता ही देता है।

"और जब 'बुद्ध की मुस्कान' का नाम देकर परमाणु बमों का विस्फोट किया जाता है तो कांधार में, बामियान के पहाड़ों में उनका सिर मोर्टारों और मिसाइलों से तोड़ दिया जाता है।"

सुबह -सुबह मेरे पड़ोस में उठाने वाली अजान से जब मेरी मीठी नींद में दखल पड़ता है तो यह शायद मेरे लिए जायज वजह है कि मैं उस मस्जिद को बम से उड़ा दूं?

अमितवा जी को वैवाहिक जीवन कि ढेरों शुभकामनाये और ईश्वर उस बच्ची को "सार्थक दीर्घायु" प्रदान करें।


उदय जी, कृपया सांप को अपने अंदाज में हमारे सामने आने दें उसे गुलदस्ते में छिपाकर लोगों में फूलों के लिए नफरत क्यों भरते हैं?
October 7, 2009 3:57 PM


उदय प्रकाश जी का प्रतिउत्तर -


Uday Prakash said...
nishachar ji, i regret that i don't have an access to nagari font here, however i 'd certainly like to make a short comment over your reaction to the post.first, i've not 'acuused' any single political nation-state or a similar state-head for nuclear explosion and about madness towards wmd. if i borrow from the title of khushvant singh's column, it's 'malice towards all'.secondly, it seems that your mind is heavily and irrepairably 'indoctrinated' by a virus, injected in side by hate-traders and war_mongers. you've certainly lost your ability to think as a human individual, as a citizen having an identity out side religious, ethnic, racial, language, creed or other id-icons provided and imposed by the same powers, who makes and creates catastrophe,thirdly, in terms of social sciences, you are trapped in a mind-set which has strong comunity bias, it's called 'inter-community perspective', where one community (or race or any such id) thinks that the 'other' community or group is 'bad', 'filthy', 'aggressive', 'violent', 'inferior'...etc. where one community or group nurtures hate and suspicion about the group or community. if you take up a journey backward in civilizational plan, you can reach up to a tribal stage where a small group of kabeela becomes canibal to the 'other' kabeela because he has similar inter kabeela-perspective towards the other.in my humble opinion, there is no dialogue possible with a mind like you, you can only recieve signals from the media,power-holders and communalized states.it's pathetic that you've made your unique human-mind, gifted by the God, victim and trash-bin of such forces.what i can have for you, is....Finally Prayer..(Aur Ant me Praarthanaa)That's it !
October 8, 2009 1:11 PM


"उदय जी ने तो मुझ "मूढ़ मगज" के साथ किसी भी संवाद की सम्भावना से इनकार कर दिया है, अब आप ही मेरा उद्धार करें"