शनिवार, 2 फ़रवरी 2008

सय्यद अली शाह गिलानी के मानस पुत्र .......................

राज ठाकरे जिस प्रकार कि आग उगल रहा है उसे देखकर ये लगता है कि अब समय आ गया है कि क्षेत्रीय पार्टियों का अस्तित्व समाप्त कर देना ही इस देश कि अखंडता के लिए हितकर है । पहले वह हिन्दू हितों की बात करता था और जब समाज के एक बडे तबके ने उसे भाव नही दिया तो वह मराठी अस्तित्व का कुकरहांव अलापने लगा । अगर राज में काबिलियत है तो वह मुम्बई से बाहर निकलकर किसी दूसरे प्रांत में खुद को साबित करे . नरेन्द्र मोदी को सभी छद्म सेकुलरों ने खूब गरियाया लेकिन गुजरात ही नहीं बल्कि पूरे भारत में उनकी स्वीकार्यता बढ़ी है और राज ठाकरे अपने घर में ही जमीं तलाश रहा है वह भी जमीन खोदकर...............
अली शाह जिलानी और उसके जैसे तमाम अलगाववादी नेताओं ने बीस साल पहले यही खेल कश्मीर में शुरू किया था और धरती के स्वर्ग को जीता जगता जहन्नुम बना दिया। क्या राज भी वही करने का इरादा रखता है ?

रविवार, 20 जनवरी 2008

वाह रे भारतीय ..............

पर्थ में ऑस्ट्रेलिया हारा और वह क्या खूब हारा . पूरी टीम को बधाई............ पूरा देश खुश है .......... वो मारा पापड़ वाले को....... बड़े चले थे सत्रह टेस्ट जीतने. ......ऐसा धोबी पछाड़ मारा की हो गए चारो खाने चित्त. ......भारतीय मानस अघा गया ...... अब हम तो कभी जीत नहीं सके सत्रह टेस्ट (सत्रह क्या सात भी नहीं) , पर कोई दूसरा साला जीत ले यह हम कैसे गवारा कर लें........ आखिर हम भारतीय हैं.... अपना कुछ बने या न बने दूसरे का खेल बिगाड़ने में तो हम उस्ताद हैं ही.....