शुक्रवार, 9 जनवरी 2009

राष्ट्रवाद और हम भारतीय

इस्राइल ने गाजा पर धावा क्या बोला सारी दुनिया से उसके ख़िलाफ़ आवाज उठने लगी। यहाँ तक की भारत की महान और धर्मनिरपेक्ष कांग्रेसनीत सरकार जो किसी तरह इस मामले में चुप्पी साधे हुए थी उसे भी इस विषय पर उवाचना पड़ा कि भैया ये तो गलत है.......... इस्राइल को अपने हमले तुंरत बंद करने चाहिए.लेकिन इसका एक दूसरा पक्ष भी है. इस्राइल सारी दुनिया की आलोचना सहकर भी गाजा पर हमले जारी रखे हुए है क्योंकि वह अपनी सीमाओं और नागरिकों के सुरक्षा के प्रति द्रणप्रतिज्ञ है भले ही उसे अपनी अन्तराष्ट्रीय छवि की बलि चढानी पड़े. उसके इस द्रण निश्चय के पीछे कौन सी भावना काम करती ही. जवाब एक ही है - प्रखर राष्ट्रवाद. यही एक भावना भारतीय राजनीतिक नेतृत्व और यहाँ के जनमानस को अपने इस्राइली समकक्षों से अलग श्रेणी में लाकर खडा कर देती है.भारतीय राष्ट्रवाद जो आज के जनमानस में दृष्टिगोचर होता है वह पेशाब का झाग (श्री सुरेश चिपलूनकर के शब्दों में) है जो केवल क्रिकेट मैच और गणतंत्र दिवस की परेड में 'भारत माता की जय' बोलने तक सीमित होता है. इसे जरा विस्तार से समझने की आवश्यकता है।

1. मेरे एक सम्बन्धी साइबर कैफे चलाते है. उत्तर प्रदेश सरकार ने अब साइबर कैफे में इन्टरनेट का उपयोग करने हेतु पहचान पत्र प्रस्तुत करना अनिवार्य कर दिया है परन्तु मैं देखता हूँ की परिचय पत्र मांगने पर अधिकांश लोग सहयोग करने के बजाये आनाकानी और हील हुज्जत करते हैं. जबकि ऐसा नागरिकों की सुरक्षा के लिए ही किया गया है. क्या सभी का फर्ज नहीं बनता की वे परिचय पत्र दिखाकर कानून का पालन करें? जबकि यही लोग बम विस्फोट के बाद जिस साइबर कैफे से ईमेल भेजा गया होता है उसके मालिक को हज़ार गलियां सुनाते और उसे देशद्रोही तक कहते है।

2. ट्राफिक और अन्य कायदे - कानूनों का पालन हम भारतीय किस प्रकार करते हैं यह किसी से छुपा नहीं है. कोई भी परिवार, समाज, राष्ट्र बिना कायदे कानूनों के नहीं चल सकता. क्या हम अपने घर में भी उसी प्रकार कचरा फैलाते, पीक थूकते या पेशाब करते फिरते हैं जिस प्रकार हम सार्वजनिक स्थानों पर करते है? यदि नहीं तो फिर किस मुंह से हम इसे अपना देश कहते हैं।

3. जरा - जरा सी बात पर युवा वर्ग तोड़- फोड़ पर उतर आता है और लाखों की सार्वजनिक संपत्ति स्वाहा हो जाती है. क्या यह संपत्ति किसी दूसरे की है? जी नहीं यह हमारे और आपके अदा किये हुए टैक्स से खरीदी गयी है.......हमारी गाढी कमाई है. और फिर इन बेजान वस्तुओं ने आपका क्या नुक्सान किया है. नुक्सान किया है तो किसी अधिकारी, मंत्री या नेता ने. यदि है हिम्मत तो जाईये और उसे उसके घर से खींचकर चौराहे पर चार जूते मारिये. लेकिन नहीं... आप ऐसा नहीं कर पाएंगे क्योंकि उस के चारों तरफ सुरक्षा घेरा है और ऐसे में आपपर जूते पड़ने की संभावना ज्यादा है. तो गुस्सा बेजुबान वस्तुओं पर ही उतरता है. यह है हमारी नपुंसक वीरता और देशभक्ति !!

4. हमारा पडोसी चीन न सिर्फ हमारा प्रतिद्वंदी है बल्कि हम उससे युद्ध भी हार चुके हैं साथ ही वह हमारे विरोधी देश पाकिस्तान का घनिष्ट मित्र भी है. अन्तराष्ट्रीय संधियों और कानूनों के चलते हम चीन के बने सामानों पर पाबन्दी नहीं लगा सकते. भारतीय बाज़ारों में चीन के बने इलेक्ट्रॉनिक सामान, लक्ष्मी- गणेश और अन्य देवी देवता, घरेलू उपयोग की वस्तुए, खाने पीने की वस्तुएं, बच्चों के खिलौने और उनके उपयोग की वस्तुए सब छाये हुए हैं क्योंकि उनकी कीमत भारतीय वस्तुओं से थोडी कम है. जबकि हम सभी जानते हैं की गुणवत्ता के मामले में चीन का बना सामान न सिर्फ घटिया है बल्कि जहरीला और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी है. क्या हम चीनी सामानों को खरीदने से परहेज नहीं कर सकते ? यह हमारे देश की बहुमूल्य विदेशी मुद्रा को एक ऐसे देश में जाने से रोकेगा जो हमारा शत्रु देश है. क्या यह राष्ट्रवाद नहीं है ?

ध्यान दीजिये - नेताओं के सुधरने की आशा मत कीजिये क्योंकि सुधरकर उनका कोई फ़ायदा नहीं होने वाला है, सुधरना हमें और आपको ही होगा।
उठिए, जागिये और सतर्क बनिए, अपने अधिकारों के प्रति भी और अपने कर्तव्यों के प्रति भी, कहीं ऐसा न हो कि देर हो जाये और हमारे प्रमाद का फल आने वाले पीढियों को भुगतना पड़े. अगर ऐसा हुआ तो इतिहास हमें कभी माफ़ नहीं कर पायेगा....



पुनःश्च : ट्रांस्लितेराटर कि सीमाओं के कारण कुछ वर्तनीगत अशुद्धिओं के लिए क्षमा चाहता हूँ.

गुरुवार, 1 जनवरी 2009

क्या अमेरिका सचमुच भारत के पक्ष में है ????

मुंबई हमलों में विदेशी नागरिकों के मारे जाने से (जिनमे अमेरिका, ब्रिटेन सहित तमाम देशों के नागरिक थे ) भारत को आतंकवाद के ख़िलाफ़ पाकिस्तान को घेरने का मौका हाथ लग गया है। इस मुहिम में अंतर्राष्ट्रीय स्तरपर भारत को दुनिया के तमाम देशों से समर्थन भी हासिल हुआ है। लेकिन इस सिलसिले में सबसे दिलचस्प है अमेरिका का रुख जो लगातार पकिस्तान पर दबाव बनाये हुए है। "लख्वी" को भारत को सौंपने का निर्देश इस श्रृंखला की एक कड़ी है। तो क्या ये मान लिया जाए की अमेरिका के लिए अब पाकिस्तान की उपयोगिता समाप्त हो गई है और वह भारत को पाकिस्तान के ऊपर तरजीह देने को तैयार है ?? सतही तौर पर देखने से ऐसा प्रतीत हो सकता है कि अमेरिका ने भी अब enough is enough का रुख अख्तियार कर लिया है। किंतु गहरे से सोचें तो परतें कुछ अलग ही तरह से खुलती हैं।
१ अमेरिका इराक में अपने उद्देश्य में कामयाब हो चुका है (उसने वहां के तेल भंडारों पर कब्जा जमा लिया है और अपने सबसे बड़े दुश्मन सद्दाम को निपटा दिया है)।
२ इरान के परमाणु कार्यक्रम को सबसे ज्यादा मदद पाकिस्तान से मिलने की संभावना है अतः पाकिस्तान के कान उमेठना जरूरी हैं परन्तु अफगानिस्तान की फांस के चलते वह सीधे तौर पर पकिस्तान को नही निपटाना चाहता । इस घटना से उसे भारत के रूप में एक कन्धा मिल गया है अपनी बन्दूक को चलाने के लिए।
३ भारत के रूप में उसे एक ऐसा साझीदार मिल सकता है जो उसे एशिया में चीन के ख़िलाफ़ न सिर्फ़ एक मजबूत आधार प्रदान कर चीन पर दबाव बनने में मदद करेगा बल्कि एक बड़ा बाज़ार भी प्रदान करेगा जिसकी अमेरिका को इस समय बेहद जरूरत है।
४ अमेरिका को अपने नए विकसित हथियारों के लिए एक सजीव युद्ध भूमि चाहिए जहाँ न सिर्फ़ उनकी मारक क्षमता का सही आंकलन हो सके बल्कि उसे उसके संभावित खरीदारों को प्रर्दशित भी किया जा सके । भारत - पकिस्तान के बीच एक सीमित युद्ध से बढ़िया मौका और क्या हो सकता है। इस बहाने पकिस्तान को उसके पैजामे में वापस भेजा जा सकता है।
५ हथियार उद्योग अमेरिका का सबसे बड़ा उद्योग है और तकरीबन सभी अन्य उद्योग उससे किसी न किसी रूप से जुड़े हुए है चाहे अत्याधुनिक हथियार हों, संचार साधन हों, सैनिको के कपडे और अन्य साजो सामान हो या फिर उनके खाने पीने की वस्तुएं । अमेरिका में मंदी और प्रतिगामी विकास दर के चलते भारत - पाकिस्तान के बीच युद्ध इन्हे संजीवनी प्रदान कर सकता है।
इस प्रकार भारत - पाकिस्तान के बीच संभावित युद्ध अमेरिका के कई हित साध सकता है ।
भारत के लिए फायदे की बात यह है कि पाकिस्तान स्वयं भी युद्ध नही चाहता और इसकी संभावना से भयभीत है क्योंकि वह जानता है कि भारत के साथ सीधी लडाई उसके लिए विनाश का कारण होगी क्योंकि न तो उसके पास भारत जितनी ताकत है और ना नैतिक बल। अतः भारत को चाहिए कि वह अपनी मांगो पर डटा रहे और दबाव बनाये रखे साथ ही युद्ध के लिए तैयार रहे और युद्ध होने की स्थिति में आर या पार की लड़ाई लड़े।